नज़रिया: चुनावों पर निशाना साध पाएगी 'सर्जिकल स्ट्राइक' की रणनीति?
ना के उत्तरी क्षेत्र के कमांडर रहे और के सितंबर में कथित सर्जिकल स्ट्राइक के प्रभारी लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) डी एस हुड्डा ने एक अखबार से कहा है कि इन वीडियोज़ को ऑपरेशन के तुरंत बाद "सबूत" के तौर पर पेश किया जाना चाहिए था, क्योंकि उस वक्त पाकिस्तान इससे इनकार कर रहा था.
टेलीविज़न पर इन वीडियो क्लिपिंग्स को बार-बार दिखाया जा रहा है. कई चैनल तो ऑपरेशन का नाट्य रूपांतरण भी दिखा दिया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और ऑपरेशन में शामिल दूसरे बड़े अधिकारियों की बनावटी आवाज़ें भी सुनाई जा रही हैं.
इस तरह सर्जिकल स्ट्राइक को मई 2011 में अमरीका के "ऑपरेशन नेपच्यून स्पीयर" से भी बड़े ऑपरेशन के तौर पर दिखाया जा रहा है, जिसमें ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के ऐबटाबाद में घेरकर अमरीकी सेना ने मार दिया था.
हर साल की तरह बीजेपी ने इस साल भी 26 जून को आपातकाल की बरसी पर कांग्रेस पर खूब हमले बोले. इस साल तो ये हमले कुछ ज़्यादा ही तेज़ थे. और इसी बीच सर्जिकल स्ट्राइक के ये वीडियो भी सामने आ गए.
कथित सर्जिकल स्ट्राइक और आपातकाल के तार जुड़कर अति-राष्ट्रवाद और कांग्रेस विरोधी शक्तिशाली राजनीतिक नैरेटिव बनाते हैं. कम से कम बीजेपी की तो यही कोशिश है.
साल 2019 के आम चुनाव नज़दीक हैं, ऐसे में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी राष्ट्रवादी छवि का प्रमाणपत्र देने का कोई मौका खोना नहीं चाहते. साथ ही वो कांग्रेस को भी एक ऐसी पार्टी के तौर पर पेश करना चाहते हैं जो भारत का हित नहीं चाहती.
गुरुवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में रविशंकर प्रसाद से सवाल किया गया कि क्या सरकार और पार्टी सर्जिकल स्ट्राइक की जारी की गई वीडियो का राजनीतिक फ़ायदा लेना चाहती है, और क्यों इन वीडियो को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल, गुजरात और कर्नाटक के चुनावों से पहले जारी नहीं किया गया. ये चुनाव सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हुए थे. क्या चुनाव से पहले इन वीडियो को जारी ना करने की वजह ये थी कि इन राज्यों के बहुत से लोग सेना में हैं या पूर्व में रहे हैं.
इसमें कोई शक नहीं है कि स्ट्राइक ने यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल और यहां तक की कर्नाटक में भी चुनाव को बीजेपी के पक्ष में करने में मदद की.
इसकी वजह ये थी की चुनावी राज्यों के लोगों ने नरेंद्र मोदी को "एक ऐसे मज़बूत और साहसी नेता" के रूप में देखा, जिसे देश ने इंदिरा गांधी के बाद नहीं देखा था.
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